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Friday, October 1, 2010

बापू कि बर्थडे

रोज़ की तरह आज भी बापू याद आ रहे हैं। उनकी बर्थडे तो खैर एक वजह है ही, मगर इस बार उनकी याद और भी ज्यादा शिद्दत से आ रही है क्योंकि शायद इतने सालों में पहली बार खुद बापू को हम लोगों की ओर से मिलने वाली बर्थडे गिफ्ट बहुत पसंद आ रही होगी। उनके ईश्वर अल्लाह ने अपने बन्दों को जो सन्मति दी है, जिसके चलते अच्छे खासे तनाव के बाद भी उनके हिंदुस्तान में अमन चैन बरकरार रहा है, वो शायद हम हिन्दुस्तानियों की ओर से पहली ईमानदार गिफ्ट होगी उनके बर्थडे पर। कहीं कहीं पर हमारे हाथों में शायद कुछ कुछ खुजली हुई होगी, पर बापू के उसी ईश्वर अल्लाह ने शायद फिर हमें यह भी सद्बुद्धि दे दी कि हाथों की खुजली मिटाने के चक्कर में यही हाथ टूट भी सकते हैं। ये देख के तो लगता है कि हम जैसे तैसे भी हों, हम ऐसे भी हैं कि हिंदी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा। जय हिंद.

नीलाभ कृष्ण खरे

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