'' मनुष्य पुरुषार्थ का पुतला है और उसकी सामर्थ्य और शक्ति का अंत नहीं है । वह बड़े से बड़े संकटों से लड़ सकता है और असंभव के बीच संभव की अभिनव किरणें उत्पन्न कर सकता है । शर्त यहीं है की वह अपने को समझे और अपनी सामर्थ्य को मूर्त रूप देने के लिए साहस को कार्यान्वित करें . ''
---किसने कहा ---आप बताएं ?
-जय प्रकाश पाण्डेय
माइक्रो फाइनेंस शाखा ,भोपाल
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