A Chronicle of Enlightened Citizenship Movement in the State Bank of India

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Monday, May 17, 2010

स्वयं सहायता समूह


महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु महिला एवं बाल विकास विभाग, मानव संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा विभिन्न कार्यक्रम चलाये जा रहे है, इनके अन्तर्गत स्वयं सिद्धा, स्वशक्ति, समेकित महिला सशक्तिकरण एवं विकास परियोजना, हरियाणा, स्टेप प्रोग्राम, स्वावलम्बन, महिला विकास एवं सशक्तिकरण हेतु दूरस्थ शिक्षा, किशोरी शक्ति, राष्ट्रीय महिला कोष के अन्तर्गत प्राविधान, बालिका समृद्धि योजना, स्वाधार तथा सहयोगी सेवायें जैसे- कामगार महिलाओं हेतु छात्रावास/आवासीय सुविधायें इत्यादि। महिलाओं को प्रोत्साहित करने हेतु अनेक पुरस्कार योजनायें भी संचालित की जा रही है, जैसे- स्त्री शक्ति पुरस्कार योजना। इसके अतिरिक्त अनेको कानून बने है जो महिलाओं को संरक्षा प्रदान करने हेतु चल रहे है। महिला सशक्तिकरण से आशय है-महिलाओं का शारीरिक, सामाजिक, मानसिक, भावनात्मक, आर्थिक एवं आध्यात्मिक रूप से सुदृढ़ होना। वर्तमान में महिलाओं को आर्थिक रूप से सुदृढ़ व आत्मनिर्भर बनाने के लिये महिलाओं को छोटे-छोटे समूहों में गठित कर नियमित बचत द्वारा बैंक से सम्बद्ध किया जा रहा है। जहाँ महिलायें अपनी सूक्ष्म मासिक बचत को प्रतिमाह सामूहिक रूप से एकत्र कर बैंक में अपने समूह के नाम खाते में जमा करती है। इस धनराशि में आवश्यकता पड़ने पर अपने समूह के सदस्यों को सामूहिक निर्णय से ऋण देती है। यह ऋण ब्याज़ अथवा बिना ब्याज़ के समूह की सदस्याओं को आवश्यकता पड़ने पर प्राप्त होता है। सामान्यतः इन समूहो की ब्याज की दर भी सूक्ष्म होती है तथा ऋण संबंधी आवश्यकता तुरन्त पूरी हो जाती है, जिससे महिलायें आर्थिक रूप से अपने छोटे-छोटे कार्यो को सम्पादित करती है। यह कार्य पारिवारिक हित के ही होते है जैसे- बच्चे के स्कूल की फीस, पति के कार्य हेतु धन, स्वयं कार्य करने हेतु धन इत्यादि। इन समूहों के माध्यम से महिलायें आर्थिक क्रियाकलापो को सरलता से पूर्ण कर लेती है तथा अपने छोटे से समूह में आत्मनिर्भरता का अनुभव करती है।



स्वयं सहायता समूहों की महिला सशक्तिकरण में भूमिकास्वयं सहायता समूहों की महिला सशक्तिकरण के विभिन्न पहलुओं में भूमिका निम्नांनुसार ऑकी जा सकती है।
शारीरिक स्वास्थ्य जो अन्य समस्त क्रियाकलापो का आधार है, उसे बढ़ावा देने में महिला स्वयं सहायता समूहों की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है। ग्राम्यस्तर पर संचालित समस्त स्वास्थ्य कार्यक्रमों में महिला समूहों की भागीदारी उनका स्वयं सेवक के रूप में स्वास्थ्य कार्यकताओं के साथ भूमिका निभाना जैसे- पल्स पोलियो अथवा एड्स जागरूकता कार्यक्रमों में ग्राम समूहों का भाग लेना तथा महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी सुविधायें जुटवाने में सहायता करना एवं उनमें जागरूकता लाना। इस प्रकार स्वयं सहायता समूह महिलाओं को शारीरिक रूप से सशक्त करने में सक्षम है।
इन समूहों में गठित यह महिलायें अपनी मित्र महिलाओं के साथ विचारो का आदान-प्रदान कर अपने विचारो में स्वीकृति प्राप्त करती है। निर्णय लेते समय कार्य-कारण की खोजबीन करती है। अपनी मित्र महिलाओं के कार्यो में अपनी स्वीकृति प्रदान करती है अथवा अपने निर्णयों मे उनकी स्वीकृति प्राप्त करती है। इस तरह उनकी विचार शक्ति, विचारो का आदान प्रदान, एक विचार के विभिन्न पहलुओं को देखने की शक्ति जो विभिन्न मित्र महिलाओं की भागीदारी से आती है, पनपती है, जिससे उनमें बौद्धिक सशक्तता आती है।

इन समूहों में गठित महिलायें सामाजिक स्तर पर भी अपनी प्रभावशाली भूमिका को पहचानना सीखती है। मित्र महिलायें मिलकर सामाजिक कुरूतियों का बहिष्कार कर अपने समाज से पिछड़ेपन के कारणो को दूर करने में सहायक होती है जैसे- शराबखोरी, जुआ, दहेज प्रथा, बाल विवाह और अनेको ऐसी समस्यायें जिनके कारण महिलायें त्रासित रहती है। यह भूमिका महिलाओं की सामाजिक सशक्तता को बढ़ाती है तथा स्वयं सहायता समूह समाज में एक मजबूत सामूहिक नेतृत्व का कार्य करते है।

-  जय प्रकाश पाण्डेय

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