हर रोज की तरह आज भी मै मन्दिर जा रहा था. मन्दिर की सीढिया चढ्ते समय एक भिखारी बार बार अपने मैले कुचले कपङौ मे, मेरे आगे आ-आकर भीख माग रहा था. बार बार मना करने पर भी वह पीछा छोङ्ने को तैयार नही था. इस बार तो उसने हद ही कर दी. मेरी कमीज़ को पकङ कर मेरे सामने ही खङा हो गया, मै काफी झल्ला गया था. अपना आपा खो बैठा, परिणाम की कल्पना किये बगैर मैने उसको एक चाटा मारा और झिङ्कते हुए एक धक्का दे मारा..... यह क्या हुआ? वह भिखारी अपना सन्तुलन खो बैठा था. सीढियो से टकराते हुए नीचे की और गिरता चला गया. वह नीचे गिर पङा था, सिर से खून बह रहा था, मै पशोपेश मे था क्या करु अब? क्या भाग जाउ? क्या मन्दिर मे कही छिप जाउ?
परन्तु इस बार मेरे अन्तरमन ने कुछ और ही मेरे दिमाग को आदेश दिया, नही तुम एक प्रबुध्द नागरिक हो, तुम्हे पहले तो अपने पर नियन्त्रण रख कर इस प्रकार का कार्य नही करना था, और अब तुम अपने कर्तव्यो से मुह मोङ रहे हो. मेरे मे जाग्रति आयी, मै तुरन्त नीचे उतरा और भीखारी को अपनी कार मे बैठा कर नजदिकी अस्पताल मे ले गया, घबराने जैसा कुछ भी नही था, थोङी चोटे आयी थी, उसकी पटटी करवाइ और कुछ दवाये दिलाकर उसे छोङ दिया गया.
घटना छोटी सी है, पर इसने मुझे इतनी आत्मसन्तुष्टि दी, जो मेरे रोज मन्दिर मुर्ती दर्शन पर कभी भी नही हुइ. यह घटना मुझे "देव दर्शन" से भी काफी बङी लगी. मुझे लगा मेरा रोज-रोज मन्दिर जाने का प्रतिफल मुझे मिल गया.
SHARAD BALKRISHNA NAIK,
CHIEF MANAGER,
CUSTOMER SERVICE CENTRE,
State Bank of Indore,
HEAD OFFICE,
INDORE.
Thursday, February 11, 2010
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