A Chronicle of Enlightened Citizenship Movement in the State Bank of India

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Monday, February 8, 2010

गर होंसले बुलंद हों तो ....

गरीब अन्पड महिलाएं , जो बैंक विहीन आबादी में निवास करती है , जो लोन लेने के लिए साहूकारों के नाज- नखरों को सहन करती हुई लोन लेती थीं , जो बैंकों से लोन लेने के बारे में स्वप्न में भी नहीं सोच सकतीं थी , ऐसी महिलाओं के आर्थिक उन्नयन में माइक्रो फाइनेंस की अवधारणा मील का पत्थर साबित हो रही है , किसी ने कहा है '' कमीं नहीं है कद्र्ता की ....कि अकबर करे कमाल पैदा .........इस भाव को स्व सहायता समूह से जुडी महिलाओं ने बता दिया है कि '' गर होंसले बुलंद है तो पहाड़ में भी रास्ते बन जाते है ........
स्टेट बैंक की माइक्रो फाइनेंस शाखा ने होशंगाबाद के एक गेर सरकारी संगठन '' युक्ति समाज सेवा सोसायटी को २५ लाख का लोन दिया था ,लोन इन रिमोट एरिया एवं बैंक विहीन आबादी के स्व सहायता समूह की महिलाओं के आर्थिक उन्नयन हेतु दिया गया था , लोन राशी की उपयोगिता के सर्वे , जांच एवं इन महिलाओं की इनकम जेनेरितिंग गतिविधियों के अवलोकन , मार्गदर्शन हेतु मेनेजर पाण्डेय द्वारा किये गए सर्वे से लगा कि इस आवधारनासे होशंगाबाद जिले की हजारों महिलाओं में न केवल आत्म विश्वास पैदा हुआ बल्कि इन स्माल लोन ने उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाया , बेदर्द समाज और अभावों के बीच कुछ कर दिखाना आसान नहीं पर इन महिलाओं के होसले बुलंद है .....
होशंगाबाद के मलाखेदी में एक खपरेल मकान में चाक पर घड़े को आकार देती ३० साल की बिना पदीलिखी लखमी प्रजापति को भान भी नहीं होगा कि वह अपनी जैसी उन हजारों महिलाओं के लिए उदाहरन हो सकती है जो अभावों के आगे घुटने टेक देती है , दो बच्चों की माँ ल्क्स्मी ने जब देखा कि रेतमजदूर पति की आय से कुछ नहीं हो सकता तो उसने बचपन में अपने पिता के यहाँ देखा कुम्हारी का काम करने का सोचा , काम इतना आसान नहीं था लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी, महीनों की लगन के बाद उसने ये काम सीखा और आज वह दो सो रूपये रोज कमा रही है इस प्रकार स्व सहयता समूह से जुड़ कर अपने परिवार का उन्नयन कर देवर की शादी का खर्चा भी उठाया , बच्चे इंग्लिश स्कूल में जाने लगे है ...... शमा विशकर्मा भी ऐसी ही जीवत वाली महिला है जिसने बिना पदेलिखे रहते हुए भी haar नहीं मानी और अपने पेरों पर खड़ी हो गई , वह बताती है कि पहले रेशम केंद्र में मजदूरी करने जाती थी तो ७०० / मिलते थे लेकिन एक दिन युक्ति समाज ने रेशम कत्त्ने की मशीन का लोन दिया तो मशीन घर आ गई मशीन घर पर होने से यह फायदा हुआ कि काम के घंटे ज्यादा मिल गए और वह ३०००/ से ज्यादा कमाने लगी है ..... अंधियारी गाँव की मंजू चौधरी और बेरखेडी गाँव की लाक्स्मी ने तो सहकारिता की वह मिसाल पेश की जिसकी जितनी तारीफ की jaay कम है , गाँव की अपने जैसी दस मलिलाओं ने स्व सहयता समूह बनाकर लोन लिया फिर सिकमी (लीज) पर खेती कर रहीं है समूह की सब महिलाएं खेतों में हल चलने के आलावा वह सब काम भी करती है जो अभी तक पुरुस करते थे ........इन सब महिलाओं का कहना है कि ....गरीबी अशिक्छा कुपोषण आदि की समस्याओं से सब कुछ डूबने की निराश भावना से उबरने के लिए जरूरी है कि गाँव एवं शहरों में हो रहे बदलाव का सकारात्मक रूख उजागर किया जाए .........
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जय प्रकाश पाण्डेय
माइक्रो फायनेंस शाखा भोपाल
9425852221

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