पिछले कुछ वर्षो से मन मे यह विचार लगातार आ रहा था कि मै अपने जीवन को किस तरह से जी रहा हु. १८-१९ आयु वर्ष कि आयु से नौकरि कर रहा हु तथा ६० वर्ष कि आयु तक करता रहुन्गा और एक दिन जब मै ६० वर्ष पुर्न करुगा कुछ लोग मुझे एक शाल, एक श्रिफ़ल देकर येह घोषना कर्ने का अधिकार पलेगे कि मै सेवनिवर्त हो चुका हु.
य़ह उधेङ्बुन मेरे दिमाग मे लगातार बनी रहती थी कि क्या मे अपनी स्वेत्चा से इस नौकरी मे आया था या परिथिस्यो से मज्बुर हो कर मे यहा आया था. मे इस नौकरी के अलावा भी कुत्च और कर सक्ता था. कुल मिलाकर अपनी नौकरी एवम जीवन के बीच कोइ फ़रक नही कर पा रहा था.
सिटिज़न एस बी आई कार्यक्रम ने इस दुविधापुर्न स्थिति से उबरने की मेरी कोशिश को एक नै राह दिखाइ. कायकम के पुर्न होने पर मे अपनी मन स्थिति मे भारी बद्लाव मह्सूस कर्ता हू और जीवन के कै प्रश्नो के पुर्व मे अकले जीने मे कथिनै पा रहा था. कार्यकरम के पूर्व पचयत दूसरो के लिये, समाज के लिये जीने क विचार दिमाग मे कोन्ध रहा है.
मेरी कौशिश रहेगी इस कार्यकरम के माध्यम से मै अपने कै साथियो को लाभान्वित करु.
चन्द्रकान्त पाठक
प्रधान कार्यालय
स्टेट बैंक ऑफ़ इंदौर
इंदौर
Monday, February 8, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment