श्री विनोद पुरिया, स्टेट बैन्क आँफ इन्दॊर, बरोठा शाखा व्दारा सुनाये खुशी के पल
बात १९९४ की है, मै अपनी शाखा मे कार्य कर रहा था. समय लगभग ३.३० का था. तभी एक बुजुर्ग महिला बङी परेशान और रोती हुई हमारी शाखा मे आई. बैन्क का लेनदेन बन्द हो चुका था. मैने महिला से उनकी परेशानी का कारण पूछा. तब उन्होने मुझे बताया कि उनकी पुत्री कि तबियत बहुत खराब है और उसे रक्त की जरूरत है. वार्तालाप के दौरान मुझे मालूम हुआ कि उनकी पुत्री का एवम मेरा ब्लङ ग्रुप एक ही है. परन्तु मैने पहले कभी भी रक्तदान नही किया था।
उनकी बात सुनकर अचानक मेरे मन मे विचार आया कि मुझे उनकी मदद अवश्य करना चाहिये और मै जीवन मे पहली बार रक्तदान करने के लिये उनके साथ उसी समय चला गया और जीवन मे पहली बार रक्तदान किया, जिससे मुझे किसी का जीवन बचाने कि बहुत खुशी हुई जो शब्दो के माध्यम के व्यक्त करना असँभव है. इसके बाद मैने १२ अन्य लोगो को भी रक्तदान किया।
खुशी के इन पलो को सुनाते समय श्री विनोद पुरिया के चेहरे के भाव एंव आँखो मे आई चमक स्पष्ट करती है कि वे आज भी उस खुशी एंव आत्मसंतोष को मह्सूस कर रहे है.
प्रस्तुति : श्री अरुण कुमार कालवे, स्टेट बैन्क ग्यानार्जन केन्द्र, इन्दौर
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