स्त्री -पुरुषों के पास समय बिताने के लिए कोई काम न हो तो वे पतित हो जाते है । हमे काम मतलब श्रम से जी नहीं चुराना चाहिए अन्यथा हम ऐसी वस्तु बन जायेंगे जिसका प्रक्रति के लिए कोई उपयोग नहीं होगा , '' फल हीन अंजीर '' की कथा याद करो जिसमे कहा गया था कि बिना काम स्त्री -पुरुष झगड़ालू , असंतुस्ट ,अधीर और चिडचिडे हो जाते है चाहे ऊपर से वे कितने ही मीठे और मिलनसार ही क्यों न दिखाई दें , जो यह शिकायत करे कि '' मेरे पास कोई काम नहीं है '' या '' मुझसे काम नहीं बनता '' उसे झगड़ालू और शिकायत से भरा हुआ समझना चाहिए , उसके चेहरे पर थकावट -सी छाई हुई होगी ...... उसका चेहरा देखने में भला न प्रतीत हो रहा होगा ।
कई लोग ऐसा सोचते है कि उनके पास काम नहीं है तो वे भाग्यवान है या उनसे काम नहीं बनता तो वे खुशहाल है यह इस बात का प्रमाण नहीं है कि काम का न होना सौभाग्य या मनचाही वस्तु है । काम न करना एक तरह से प्रक्रति के विरुद्ध -विद्रोह है ,मनुष्यता का , या पौरुष का अपमान है , यह पुर्णतः अप्राक्र्तिक और लोकिक नियमो के विपरीत है ..... अपनी रोजी -रोटी के लिए thodee कमाई कर के अपने अन्दर अहं पल लेना ......बाल -बच्चे पैदा कर के घर चला लेना क्या इतना ही पर्याप्त है इस जीवन के लिए ........ सोचो तो जरा ...... अरे भाई कुछ काम करो । कुछ काम करो .... जग में रह कर कुछ नाम करो यह जन्म हुआ कुछ व्यर्थ न हो ............ । तो कुछ तो ऐसा 'काम' कर लो जिससे पूरे विश्व के उत्थान का रास्ता प्रसस्त हो....
जिस दिन इस धरती पर श्रम और काम की कीमत गिर जायेगी उस दिन यहाँ की सारी चहल -पहल और खुशियाली मिटटी में मिल जायेगी ... अतः हमें अपने काम और श्रम के द्वारा इस संसार को बहुत सुन्दर बनाना है काम ... काम ..और श्रम ही वास्तव में असली देवता है , और यही सिटिजन एस बी आई का मूल ध्येय है .........
--जय प्रकाश पाण्डेय
माइक्रो फायनेंस शाखा
भोपाल
कई लोग ऐसा सोचते है कि उनके पास काम नहीं है तो वे भाग्यवान है या उनसे काम नहीं बनता तो वे खुशहाल है यह इस बात का प्रमाण नहीं है कि काम का न होना सौभाग्य या मनचाही वस्तु है । काम न करना एक तरह से प्रक्रति के विरुद्ध -विद्रोह है ,मनुष्यता का , या पौरुष का अपमान है , यह पुर्णतः अप्राक्र्तिक और लोकिक नियमो के विपरीत है ..... अपनी रोजी -रोटी के लिए thodee कमाई कर के अपने अन्दर अहं पल लेना ......बाल -बच्चे पैदा कर के घर चला लेना क्या इतना ही पर्याप्त है इस जीवन के लिए ........ सोचो तो जरा ...... अरे भाई कुछ काम करो । कुछ काम करो .... जग में रह कर कुछ नाम करो यह जन्म हुआ कुछ व्यर्थ न हो ............ । तो कुछ तो ऐसा 'काम' कर लो जिससे पूरे विश्व के उत्थान का रास्ता प्रसस्त हो....
जिस दिन इस धरती पर श्रम और काम की कीमत गिर जायेगी उस दिन यहाँ की सारी चहल -पहल और खुशियाली मिटटी में मिल जायेगी ... अतः हमें अपने काम और श्रम के द्वारा इस संसार को बहुत सुन्दर बनाना है काम ... काम ..और श्रम ही वास्तव में असली देवता है , और यही सिटिजन एस बी आई का मूल ध्येय है .........
--जय प्रकाश पाण्डेय
माइक्रो फायनेंस शाखा
भोपाल
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