A Chronicle of Enlightened Citizenship Movement in the State Bank of India

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Friday, January 22, 2010

पहल सिटीजनशिप

जीवन है चलने का नाम ..... जो लोंग परेशानी भरी जिंदिगी जीते है उनकी संवेदनाये मरती नहीं है , उनकी संवेदना विपरीत परिस्थतियों से लड़ने की प्रेरणा देती है और वे अन्य के लिए भी प्रेरक बन जाते है , उनकी सहज सरल बातें भी ख़ुशी का पैगाम बनकर उस माहौल में संवेदना , सेवा और सामाजिकता पैदा कर देती है , नारायणगंज शाखा में दूर - अंचल से खाता खोलने आये ''रंगेया'' ने भी कुछ ऐसी छाप छोडी ........


''रंगेया '' जब खाता खोलने आया तो बेंकवाले ने पूछा - ''रंगेया '' खाता क्यों खुलवा रहे हो ?


''रंगेया '' ने बताया - साब दस कोस दूर बियाबान जंगल के बीच हमरो गाँव है घास -फूस की टपरिया और घरमे दो-दो बछिया ....घर की परछी में एक रात परिवार के साथ सो रहे थे तो कालो नाग आके घरवाली को डस लियो , रात भर तड़फ -तडफ कर बेचारी रुकमनी मर गई ...... मरते दम तक भुखी प्यासी दोनों बेटियों की चिंता करती रही ........ सांप के काटने से घरवाली मरी तो सरकार ने ये पचास हजार रूपये का चेक दिया है , तह्सीलवाला बाबु बोलो कि बैंक में खाता खोलकर चेक जमा कर देना रूपये मिल जायेगे ..... सो खाता की जरूरत आन पडी साब ! .... बैंक वाले ने पूछा - सांप ने काटा तो शहर ले जाकर इलाज क्यों नहीं कराया ?


''रंगेया '' बोला - कहाँ साब !'' गरीबी में आटा गीला ''.... शहर के डॉक्टर तो गरीब की गरीबी से भी सौदा कर लेते है ,वो तो भला हो सांप का ... कि उसने हमारी गरीबी की परवाह की और रुकमनी पर दया करके चुपके से काट दियो , तभी तो जे पचास हजार मिले है खाता न खुलेगा ...... तो जे भी गए ............ अब जे पचास हजार मिले है तो कम से कम हमारी गरीबी तो दूर हो जायेगी , दोनों बेटियों की शादी हो जयेहे और घर को छप्पर भी सुधर जाहे ,जे पचास हजार में से तहसील के बाबु को भी पांच हजार देने है बेचारे ने इसी शर्त पर जे चेक दियो है । तभी किसी ने कहा -यदि नहीं दो तो ?........... रंगेया तुरंत बोला - नहीं साब ...... हम गरीब लोंग है ''प्राण जाय पर वचन न जाही '' ...साब , यदि नहीं दूगा तो मुझे पाप लगेगा , उस से वायदा किया हूँ झूठा साबित हो जाऊँगा ....अपने आप की नजर में गिर जाऊँगा .....gareeb तो हूँ और गरीब हो जाऊँगा .......और फिर दूसरी बात जे भी है कि जब किसी गरीब को सांप कटेगा ,तो ये तहसील बाबु उसके घर वाले को फिर चेक नहीं देगा .......... रंगेया की बातों ने पूरे बैंक हाल में सिटिजनशिप का माहौल बना दिया ............ सब तरफ से आवाजे हुई .... पहले रंगेया का काम करो , भीड़ को चीरता हुआ मैंने जाकर रंगेया के हाथों सौ रूपये वाले नए पांच के पेकेट रख दिए ....... उसी पल रंगेया के चेहरे पर ख़ुशी के जो भाव प्रगट हुए वो जवां से बताये नहीं जा सकते ...... बस इतना ही बता सकते है कि पूरे हाल में खुशियों की phuljhhadiyan जरूर जल उठीं ...... हाल में खड़े लोंग कह उठे .... कि खुशियाँ हमारे आस -पास ही छुपी होती है यदि हम उनकी परवाह करे तो वे कहीं भी मिल सकती है ...........


जय प्रकाश पाण्डेय

माइक्रो फायनेंस शाखा भोपाल


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