A Chronicle of Enlightened Citizenship Movement in the State Bank of India

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Friday, December 25, 2009

आत्म-सुधार

मनुष्य जीवन एक खेत है , जिसमे कर्म बोये जाते है और उन्ही से खट्टे मीठे फल काटे जाते है । जो आम बोयेगा वो आम खायेगा , जो बबूल बोयेगा वो कांटे पायेगा । बबूल बोकर जिस तरह आम प्राप्त करना प्रकृति का सत्य नहीं। मनुष्य जीवन में भी इस सत्य के अतिरिक्त और कुछ नहीं है , भलाई का फल सुख , शांति और प्रगति के अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकता , करील पेड़ में यदि पत्ते नहीं तो बसंत का क्या दोष ? उल्लू यदि दिन में नहीं देख पाता तो सूर्य का क्या दोष ? वर्षा का जल यदि पपीहा के मुख में नहीं पड़ता तो मेघ का क्या दोष ? यदि सिटीजन सबीई के सत्संग में रह कर कोई आत्म-सुधार प्रारम्भ नहीं करता तो किसका दोष है ?

जय प्रकाश पाण्डेय

माइक्रो फाइनेंस शाखा भोपाल

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